Posts

Showing posts from 2018

मैं भारत की दीवार…

मैं भारत की दीवार… अभी कुछ दिन पहले की बात है, कुछ लोग आए और मुझपर कंही हल्दी तो कंही लाल जोड़ा पहनाकर चले गए। कह रहे थे कि स्वच्छ भारत अभियान चलाया है किसी ने।। सुनकर खुशी हुई कि अब तो नए दुल्हन जैसे जोड़े हमेशा के लिए पास रहेंगे,,😄।। लेकिन ये क्या, वो लोग कौन है? कुछ जाने पहचाने से लगते है, अरे नही ये तो वही लोग है जो मुझे जबरदस्ती करते है, मेरी इच्छा के विरुद्ध मुझपर ना ना प्रकार की कालित(गुटखे की पीक, पोस्टर, वाक्य, advertisment) पोतते जाते है।। अरे रुको भाई सुबह तो वो लोग कह रहे थे कि अब ऐसा कुछ नही होगा, अब मैं अपनी खूबसूरती लोगों को दिखा सकूंगी।। कहाँ गए सब लोग?? बचाओ बचाओ कोई है जो मेरी इज्जत को बचा सके…. शायद कोई नही!! खैर वो अकेला इंसान भी क्या करे जो लाल किले से स्वच्छ भारत का भविष्य दिखाता है, शायद कोई वजह रही होगी मेरी इज्जत लूटने की।। उम्मीद है कोई तो आएगा!!! बहन प्रकृति तुम भी मत रो,,, ये बे-मौसम बारिश मत कर… मत सजग कर इन लोगों को,, जो अपनी इज्जत नही करते!! एक कटाक्ष #नोहरिया
''रिश्ते कुछ यूँ बदल  गए.''                     १. अगर बर्तनों पर नाम लिखने वाली मशीन ना होती तो काफी परिवार टूटने से बच जाते!!

thought@society_call

इंसान सारे दिन कचड़-पचड़ बोलता रहे, बिल्ली 1 मिनट बोले तो भी गवारा नही।। वाह रे इंसान।। # नोहरिया

ये गरीबी भी कमाल की होती है

ये गरीबी भी कमाल की होती है ये हालात भी कमाल की होती है रहता नही जब दो निवाला पास मेरे तो भूख भी कमाल की होती है हम जिंदा है तो नेता वोट मांगते है नाम से मेरे ये राजनीति भी साहब कमाल की होती है ।। बरसो बीत गए देखते देखते राह छप्पर के सर पे उन नेताओं की कोठी भी कमाल की होती है ।। हम जब मर जाते है भूख और प्यास के फिर उनके भाषण भी कमाल की होती है ।। याद है मुझे वो चुनाव भी ,जब हमें रोटी कपड़ा मकान मिलना था साहब जीतने के बाद उनके तेवर भी कमाल की होती है ।। कई नेता जो एक कमरे में रहते थे,आज मेरे नाम पे कमाई उनकी दौलत भी कमाल की लगती है।। हम गरीब है साहब ,पैदा ही नेताओ के लिए हुए है ,चुनाव के वक़्त बड़े बड़े वादे मिलते है हमे मुफ्त में ,कोई कहता है ,ये देंगे,वो देंगे लेकिन आखिर में हमारे हिस्से दो निवाले के अभाव में सिर्फ मौत आती है ।। हमारे नाम पे राजनीति करने वाले राजनेता आज 1000 करोड़ो की दौलत जमा कर चुके है उनके बच्चे विदेश में पढ़ते है ,और हम आज भी दो वक्त की रोटी के लिए मर रहे है ,हमारे बच्चे आज किसी दुकान में किसी फैक्ट्री में अपना बचपन खो रहे है क्या कहे हम अपनी दा